सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

मेरे आगे ..

कुछ इस तरह वो पलकें ,झुका गया मेरे आगे
जैसे सूरज पे पर्दा पड़ गया सारा ,मेरे आगे

हकीकत से था बेपरवाह, दिल किसी और दुनिया में
जब जागा तो दिखी ,एक नयी दुनिया मेरे आगे

कई किरदार देखे थे मेरे पहले, सितमगर ने
जो देखा मुझको तो ,हार मान बैठा वो मेरे आगे
 
सितारों से भरी थी रात, ख्वाब कई थे आँखों में
सुबह हुई तो कहता था, क्या क्या हुआ मेरे आगे

बेचारा किस तरह करे सच और झूठ में फर्क
जो उसका सच है वो तो झूठ है अब मेरे आगे

जब सुननी नहीं है बात तो चाहे जो कुछ कह लो
मेरा दिल खुद की सुनता और करता है मेरे आगे

डर जिस बात का है वही है हिम्मत की ज़मीन
ये दिखता कुछ है होता कुछ है क्या लफड़ा मेरे आगे

# शाहिद

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