रविवार, 17 अक्तूबर 2010

इत्तेफाक..

इत्तेफाक अच्छे लगते है

जैसे अचानक जब धूप से परेशान हो
और बादल छा जाए

एक ख़ामोशी की दीवार टूट जाए
किसी बहाने से

अरे रहने दो ना ,अच्छे लग रहे है
बिखरे हुए

मत छेड़ो इन्हें

कोई कह देता है
दिल में कई बातें आ जाती है

दिल भी अजीब है ना

मान जाता है कभी ,कभी जिद करता है
उसे क्या पता

इत्तेफाक रोज़ रोज़ थोड़े ना होते है
वो भी अच्छे वाले

पर जब भी होते है अच्छा लगता है
बहुत अच्छा

# शाहिद

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