मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

ग़लतफहमी ....

ख़िलाफ़त कर नहीं सकता, और तेरा हो नहीं सकता
दिल इतना बड़ा हो जिसका ,वो कमज़ोर हो नहीं सकता

 समझने की ज़रुरत है ,की क्या है फायदा इसमें
 खुदा की मर्ज़ी है इसमें ,तो बुरा हो नहीं सकता

दाग आँखों में हो तो साफ़ दिखता नहीं कभी
जो जैसा दिखता है ऐसे, वो वैसा हो नहीं सकता

"ग़ालिब" ना बन, ना उस जैसा होने का भरम रख
तू जितना जानता उसको ,वो उतना हो नहीं सकता

# शाहिद 

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