मंगलवार, 10 जुलाई 2018

उदासी

उदासी दिल के कोनों से
आँख के कोनों तक
कब जा पहुँचती है
पता ही नहीं चलता ।
दर्द से जो गला
दुखता है,
जाने कैसे
दिल का दर्द सा लगता है।
जैसे चेहरे पर
खून का आना बंद हो गया दिल से,
चेहरा कुछ ऐसे सफेद पड़ जाता है,
फिर मैं कैसे मान लूँ
कि दिल एक मशीन है ?
वो होगा
किसी के लिए,
मेरे लिए
तो वो ज़िंदगी का सबब है।
कुछ तो है दिल में,
जो जोड़े रखता है दिल को,
एहसासात से,
ख्यालात से,
ख्वाहिसात से,
और हर उस चीज़ से,
जिसे फर्क पड़ता है,
दिल के धड़कने से।
कैसे आवाज़ से पता चल जाता है
कि हाल ए दिल ठीक नहीं है ?
और फिर ये जानकर
कुछ ना कर पाने की बेचैनी
से कौन बच पाया है?
दिल जीता तो जा सकता है,
पर दिल से नहीं जीता जा सकता ।
दिल जीतने नहीं देता,
हरा देता खुद को,
जैसे शतरंज की बाज़ी
कोई दोनों तरफ से खेल रहा हो,
दिल कुछ ऐसे खेलता है ।
क्या ये खेल ऊपर वाला खेल रहा है?
~ शाहिद अंसारी

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