शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

दुनिया...

कुछ हुआ भी नहीं
और ऐसा लगा की दुनिया बदल गयी

नया सा सब कुछ ,नए लोग
नए सपने ,नए वादे

ऐसा लगा कि नयी किताब खरीद
के पढ़ रहा हूँ कोई

नए पन्ने ,नए किरदार
नए लफ्ज़ और एक नया कलेवर

मेरे पहले भी किसी को ऐसा लगा होगा
मेरे बाद भी लगेगा शायद

पर घड़ी भर को ये मानने में क्या जाता है
कि मै एक नयी दुनिया में हूँ

नयी ना सही ,पुरानी मरम्मत कि गयी

# शाहिद

3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

Shahid Ansari ने कहा…

shukriya sanjay ji..