शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

आसमान ...

एक टूटे हुए पुल पे बैठा
मै देख रहा था

आसमान, नीला  आसमान

बहुत खूबसूरत दिखता है कभी कभी
अगर मेरी नज़र से देखो
तो और ज्यादा लगेगा

कभी कभी काला  दिखता है, बहुत काला
जब घने बादल छा जाते है

पहली बार देखने वाले को लगता है कि
ऐसा ही दिखता होगा आसमान

लेकिन वो तो हर दिन अलग दिखता है

कभी एक परदे कि तरह जिसपे सितारे टाके हो

कभी छलनी कि तरह जिसमे लाखों छेद हो
जिनमे से पानी टपक रहा हो

कई बार एक साए कि तरह लगता है
जो पीछा कर रहा हो हर जगह

हम सबको अपने हिस्से में मिलता है
हम सबका एक मुठ्ठी आसमान

जब कभी वक़्त मिलता है मै उस पुल पे जाता हूँ

देखने मेरा आसमान

# शाहिद

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति....
आपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..

Shahid Ansari ने कहा…

dhanyawaad ..

aapko bhi bahut badhaiyan ..