रविवार, 13 मार्च 2011

एक बात 
बस एक 
सीधी सपाट 

जुबान से कह 
देना 

आसान नहीं हो रहा 

ये डर नहीं है

पर आखिर कैसे 
और कहाँ से शुरू करूँ

उस दिन से जब 
पहली बार देखा था तुम्हे 

धानी कलर के टॉप में 
पहली बार

तुम्हारी आँखें 

उस दिन के बाद आज तक 
परेशां करती है मुझे 

मैं चाह के भी 
कुछ और नहीं देख पाता

हर जगह हर दिन 
तुम्हे ढूंढता रहता हूँ

देखता रहता हूँ खुद के पास

कई बार कोशिश की कहने की भी
पर हिम्मत जवाब दे जाती है
  
मैं हमेशा नहीं होने की 
वजह ढूंढता रहता हूँ

कभी कोशिश भी नहीं कर पाता

पर मै कहना चाहता हूँ

हम दोनों दो अलग दुनिया से हैं
 पर मुझे तुम्हारा साथ पसंद है

बहुत ज्यादा 

मै रहना चाहता हूँ 
तुम्हारे साथ हमेशा 

क्या ऐसा हो सकता है?
क्या तुम भी ऐसा कुछ सोचती हो
या ये सिर्फ मेरा वहम है

 मुझे नहीं मालूम 

पर मै अपने दिल पे इतना 
बोझ नहीं रख सकता 

मुश्किल है मेरे लिए 
जिंदगी भर इस उलझन में जीना

मै बस आज तुमसे यही कहना चाहता हूँ...

   

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