बुलबुलों की तरह
हवा से भरे हुए
जो फूट जाते हैं
हल्का सा छूने से
पर उनमे से कुछ
पे जो उड़ पाते हैं
थोडा सा
सूरज की किरने
अलग अलग रंग दिखाती हैं
ठीक हमारी ज़िन्दगी की तरह
कभी हलकी सी चोट से भी
जान चली जाती है
और कभी
कुछ दिन बाद फिर से
वापस पटरी पे आ जाती है
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