बुधवार, 16 मार्च 2011

कल

कल जो धडकने सुन रहा था 
तुम्हारे दिल की

तुम खामोश हो गयी थी कुछ पल को
उस दौरान कोई बात नहीं हुई

लेकिन शायद सबसे ज्यादा 
बातें हुई उस ख़ामोशी में 

सिगरेट के टुकड़े से 
अखबार में जो आग लगी थी

पानी भी नहीं मिला बुझाने को उसे
पर वो आग अच्छी लग रही थी
आसमान में चाँद दिख रहा था और ठंडी
हवाएं छू रही थी दिल को
तुम्हारे सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास
 कि आदत क्यों ड़ाल रहे हो?

क्या बताऊँ और बहुत सारी चीज़ों
की भी तो आदत पड़ चुकी है
और तुम्हारी तो सबसे ज्यादा  


कोई टिप्पणी नहीं: