गुरुवार, 29 सितंबर 2011

नज़्म,

तुम आज जितने अच्छे हो,
क्या कल भी उतने ही होगे?

ये सवाल बहुत बचकाना है;
ये तुमको समझ न आना है;
मै फिर भी पूछा करता हूँ,

तुम आज मेरे हो पास जितने ;
क्या कल भी उतने ही होगे?

मेरी आँखों में , मेरी नींदों में,
पीछा करता है अक्स तेरा;

मै जब भी देखा करता हूँ;
तस्वीर तुम्हारी सीने में,
हर बार मै पूछा करता हूँ;

तुम आज मेरे हो साथ जितने ;
क्या कल भी उतने ही होगे?

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