शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

नज़्म,

रात की गहरी कालिख 

उजले चाँद कुछ यूँ
देखती है जैसे, 

चाँद सिर्फ उसको जलाने
निकला हो,

अपनी बदनसीबी 
या उसकी खुशनसीबी समझो 

जो रात इंतज़ार करती है

की हर रोज़ चाँद निकले,

और जब अमावस की रातों में 
जब चाँद नहीं दिखता ;

रात भुला नहीं पाती ,

चाँद को, 
चाँद के उजाले को....

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