हम ख़याल
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
ग़ज़ल
अगरचे शौक़ मुझको भी बहुत है लेकिन,
कुछ मुकाम सबको हासिल नहीं होते...
कुछ कश्तियाँ डूब ही जाती हैं समंदर में,
सबके नसीब में यहाँ साहिल नहीं होते...
कुछ सज़ाएँ बेगुनाहों को भी मिल जाती है यहाँ,
सूली पे चढ़ने वाले सब कातिल नहीं होते...
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