शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

ग़ज़ल,

रात जब अजनबी बन जाती है ,
नींद आती है, नींद जाती है.

मै छत पे रोज़ सजदे करता हूँ,
चांदनी जब भी मुस्कुराती है,

ज़िन्दगी जब कभी शिकायतें करती,
हसरतें दूरियां जताती है,


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