गुरुवार, 29 सितंबर 2011

...ग़ज़ल,

उस रोज़ इस तरह से, मुझ से मिल के तू गया;
एक  आरज़ू तेरे नाम से, जग जाती है हर रोज़...

मै रात से हर रोज़, कहता हूँ कि छोड़ दे;
ये रात ऐसी है , मुझे बहकाती है हर रोज़..

मै उसे भूल भी जाता हूँ , हर रोज़ फिर भी क्यों;
उसकी याद ऐसी है जो, आ जाती है हर रोज़..


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