गुरुवार, 31 अगस्त 2017

दो नज़्में

मैं क्या करता ?

मैंने रात भर अफसाने पढ़े,
दो नज़्में लिखी,
एक सिरहाने रखकर,
दूसरी दिल से लगा के सो गया ।

जब सुबह उठा,
तो सिरहाने की नज़्म मुरझा गयी थी।

मैंने उसे डस्टबिन में फेंक दिया।

और फिर देखता रहा
उसे थोड़ी देर,

क्या ये वही नज़्म थी?

दिल पर रखी नज़्म ने
दिल पर कुछ निशान डाल दिया था।

मैंने सोचा कि
नहाकर ये निशान मिटा दूँ।

पानी की बूँदों से
दिल के वर्क खुल गये,

पर वो निशान और
गहरे हो गये,
लाल सुर्ख चमकीले
किसी नये बने टैटू की तरह ।

_______शाहिद अंसारी 

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