रविवार, 6 दिसंबर 2009

हम सीखा करते हैं.....

अब  आइना  देखने  की फुर्सत ही नहीं
दूसरों की आँखों में खुद को देखा करते हैं
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ज़िन्दगी जीना भी कोई आसान फन नहीं
जागते सोते यही रोज़ हम सीखा करते हैं.
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दिल भर आता है उसकी ज़बानी सुन के 
दास्ताँ-ए-उलफ़त वो कुछ ऐसे बयाँ करते हैं
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हमें श.ऊर नहीं है बात करने का अगर
जो आप कहते है तो बज़ा कहते हैं.
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खुद को जला के भी जो रोशन जहाँ करे
उसी आग को ही तो शमा कहते हैं.
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