मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

नाराज़गी .....

थामेगा हाथ कौन अगर ये देखना है तो
ऐसे ही कभी तो कहीं पे लड़खड़ाइए ....
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ज़ुबां और आँखों की बयानी में फर्क बहुत है
दोनों में किसकी माने पहले ये बताइए....
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बात बात पे रोने की आदत है ये बुरी
ऐसी भी क्या बात है अजी मुस्कुराइए...
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गुस्से में सूरत भी  बहुत लगती है हसीन
दिल फिर भी कहता है अमा मान जाइए...
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2 टिप्‍पणियां:

Smriti यादें ने कहा…

khoobsurat sher likhe hein.....halke fulke andaaz mein rozmarra ki sanjeeda si baaatein kahi hein aapne...!

Shahid Ansari ने कहा…

@smriti ..shukriya smriti sahiba...aise hi apne khayalat batate rahe ...