रविवार, 27 दिसंबर 2009

रक़ीब.....

हो कहीं भी दिल के करीब है, तू अभी भी मेरा हबीब है..
जो टूट गया वो तो ख्वाब था,जो है रह गया वो नसीब है

वो उतर गया जो खुमार था, ये तो दो दिनों का प्यार था
जो गुज़र गयी है वो दास्ताँ, मेरे दोस्तों कितनी अजीब है...

चाहे सुबह हो या के शाम हो, इस ज़ुबां पे बस तेरा नाम हो
तुझे ले गया मुझसे छीन के, वो खुदा ही मेरा रक़ीब है....

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