रविवार, 2 अक्तूबर 2011

..

मुझे शौक़-ए-ग़ज़ल तूने ही सिखाया था मगर;
अब भूलना जो चाहूं, तो भुलाने नहीं देता.

तेरे किस्से, तेरे वादे , तेरी यादें भी छोड़ दूं;
मै सोचता हूँ रोज़, तो  होने नहीं देता.


कोई टिप्पणी नहीं: