हम ख़याल
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011
ग़ज़ल
दिन हर रोज़ क्यों एक सा ही रहता है;
कैसा दरिया है जो सूखता है और न बहता है...
उसकी आँखें पढने पे ही होगा दिल का हाल मालूम;
अब न वो कुछ कहता है,और न चुप रहता है..
खून दिल का भी सफ़ेद पड़ गया होगा;
जब लहूँ अश्क बन के यूँ आँख से बहता है..
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