शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

ग़ज़ल,

बरसात इस बार, बहुत मुश्किल गुजरी है;
ज़िन्दगी फिर ग़मों में शामिल गुजरी है.

तेरी याद ही आई है, जब भी बैठे हैं;
कुछ इसी हाल में हर महफ़िल गुजरी है.

तुझको जब भी देखा, घायल ही हुए है;
तेरी हर अदा मुझपे तो कातिल गुजरी है.

मैंने हर बार उसे अजनबी समझ छोड़ दिया;
मेरे सामने हर बार जब मंजिल गुजरी है.

तुम उस हालत को कभी ना समझ पाओगे; 
तेरे जाने के बाद जो इस दिल गुजरी है.

-शाहिद

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