शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

तू

तू हर्फ़-इ-नूर
तू एक स्याह रात भी है;
तुझसे रंज 
तुझसे शिकवा 
तुझसे शिकायत भी बहुत पर

तू ही एक दुनिया 
तू एक ख्वाब 
एक हसरत भी तू है;

तुझसे बेहतर कुछ भी नहीं 
मेरे पास शायद

इसलिए तुझ में खोना  
एक आदत सी हो गयी है;

मिल जायेंगे मुझको 
भी नए शेर नए मतलब

नयी ग़ज़ल तुम जैसी 
शायद मगर बन पाए न फिर मुझसे 

इस बात की ख़ुशी भी है 
तकलीफ भी बहुत

एक साँस को 
भी तुझसे छुटकारा नहीं मिलता;

जो खो गया एक बार
वो दोबारा नहीं मिलता;

-शाहिद

कोई टिप्पणी नहीं: