इस महीने
बहुत याद आये हो तुम;
चाय की चुस्कियों में
हर एक घूँट में
तुमको पीना चाहा,
आँख बंद करके
ख्वाबों में तुम्हे जीना चाहा
खुद से मजबूर होकर
खुद से दूरी रखी;
बहुत कोशिशों
से तुम को भुलाना चाहा;
वो एक रात;
या एक दिन नहीं था
जो था गुज़रा;
मेरी ज़िन्दगी की साँसों
ने उसे दोहराना चाहा;
क्यों हर रात
आ के मेरा घर उजाड़ देती है;
मेरे संभले हुए इस दिल को
फिसला देती है;
बहुत मसरूफ हूँ
जहाँ के मसलो में मै;
ये सोच के जब भी मैंने
दिल को बहलाना चाहा;
तेरी यादों ने दस्तक दे
के फिर आना चाहा.
-शाहिद
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