मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

तुम्हारे शहर..

आधी रात 
को जब नींद बगावत करे

तो तुम्हारे शहर 
आने को जी करता है;

सोचता हूँ,
कि कैसे खुद 
को धोखा देना सीखते है लोग;

ये हुनर आसान नहीं दिखता;

पर सुनना उन बातों को
जो शोर में  चुप हो  जाते हैं दिल के

जैसे सुनसान 
शहर उनको भी बहुत पसंद हो;

पर तुम्हारे शहर में तो 
बहुत शोर है;

फिर क्यों तुम्हारा शहर 
अच्छा लग गया मुझको;

आधी रात के बाद 
दिन नया नहीं होता;

तारीख बदल जाती है;

लोगो के जन्मदिन कि मुबारकें 
एक एक कर के 
यहाँ वहां से सुनाई देती हैं;
पर इस शोर कि वजह से 
नींद को कोई शिकायत नहीं;

नींद के एक हिस्से को
इस भगदड़ से प्यार है बल्कि;

फिर जब नींद शिकायत 
करती है कि 

उसकी वीरानियाँ कहाँ है;
तो तुम्हारे शहर आने को जी करता है..


-शाहिद

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