आधी रात
को जब नींद बगावत करे
तो तुम्हारे शहर
आने को जी करता है;
सोचता हूँ,
कि कैसे खुद
को धोखा देना सीखते है लोग;
ये हुनर आसान नहीं दिखता;
पर सुनना उन बातों को
जो शोर में चुप हो जाते हैं दिल के
जैसे सुनसान
शहर उनको भी बहुत पसंद हो;
पर तुम्हारे शहर में तो
बहुत शोर है;
फिर क्यों तुम्हारा शहर
अच्छा लग गया मुझको;
आधी रात के बाद
दिन नया नहीं होता;
तारीख बदल जाती है;
लोगो के जन्मदिन कि मुबारकें
एक एक कर के
यहाँ वहां से सुनाई देती हैं;
पर इस शोर कि वजह से
नींद को कोई शिकायत नहीं;
नींद के एक हिस्से को
इस भगदड़ से प्यार है बल्कि;
फिर जब नींद शिकायत
करती है कि
उसकी वीरानियाँ कहाँ है;
तो तुम्हारे शहर आने को जी करता है..
-शाहिद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें