बुधवार, 7 मार्च 2012

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आदतों को छोड़ना जो आसान होता,
दिल फिर इतना क्यों परेशां होता..


जो आँधियों ने उड़ा दिए होते सबूत उसके,
चमन के उजड़ने का कहाँ कोई निशाँ होता...

पहली बार में ही जो टूट गया होता,
ख्वाब वो फिर क्यों जवाँ होता..


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