शनिवार, 24 मार्च 2012

बोलो..!

रात बहुत बेचैन रहती है.
रात बहुत सुनसान रहती है,

रात अधूरी रहती है
तुम्हारे बिना,


अँधेरा नही छटता,

सुबह नहीं होती

कभी  नहीं होती ,

सिर्फ एक रौशनी का एहसास
जगा देता है,

कोई ताजगी नहीं,

जैसे ज़हन पे
घास उग आई हो,

लम्बे वक़्त से
सीलन का एहसास ,

जो किसी धूप से,
किसी गर्माहट से

ख़तम नहीं होगी,


वक़्त यूँही तो नहीं रहेगा हमेशा?


बोलो..!


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