बना है मौत का सौदागर, चाराग़र मेरा,
शोलों की ज़द में आ गया है, आज घर मेरा।।
किसी सूरत न बदलेगी सूरत मेरी,
मेरी तक़दीर का मालिक है, सितमगर मेरा।।
मेरी तक़दीर का मालिक है, सितमगर मेरा।।
तमाशे रोज़ हो रहे हैं हर तरफ मेरे,
डोर कोई भी खींचे होता है, मंज़र मेरा ।।
डोर कोई भी खींचे होता है, मंज़र मेरा ।।
वही कातिल, वही मुंसिफ, वही गवाह है याँ,
क्यों न फिर रोज़ कलम हो, यहाँ पे सर मेरा।।
क्यों न फिर रोज़ कलम हो, यहाँ पे सर मेरा।।
~ शाहिद अंसारी
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