सोमवार, 13 मई 2019

नूह की कश्ती

मैं
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
आकाश
और पाताल के बीच 

जहाँ मैं हूँ
वहाँ कोई आना
नहीं चाहता,

कपड़े का वो छोटा सा
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।

पर मेरे कहने से क्या होता है?

क्या नूह की कश्ती मेरे
कहने से बनी थी?

नहीं ना।

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