मैं
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
आकाश
और पाताल के बीच
और पाताल के बीच
जहाँ मैं हूँ
वहाँ कोई आना
नहीं चाहता,
नहीं चाहता,
कपड़े का वो छोटा सा
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।
पर मेरे कहने से क्या होता है?
क्या नूह की कश्ती मेरे
कहने से बनी थी?
कहने से बनी थी?
नहीं ना।
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