रिश्ते खून के नहीं छूटा करते
कल कह दिया था जिस से की
जाओ अब कोई नाता नहीं तुमसे
चला गया था वो मुड़ के देखते हुए
उम्मीद थी उसको की
अब नहीं लौटेगा वापस
नहीं देखने आएगा एक बार भी ये घर
कुछ दिनों में दुनिया की बातों
में वो भी खो गया था
अपने बचपन के दोस्तों की तरह
पर आज खबर देख के रहा न गया उस से
अगली सुबह ही देखने पहुच गया
और चाँद लम्हों में ही आंसुओं में
अपनी साड़ी कड़वाहट धो दी.
2 टिप्पणियां:
dusari posts ki apekcha bahut bekar likha hai shahid miya apne
ummeed hai aage ki post pasand aayegi aapko...
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