हम ख़याल
सोमवार, 8 अगस्त 2011
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दर्द का समंदर है,
अक्स मेरे अंदर है,
अब तो जो भी हसरत है,
ख्वाब ही में बाक़ी है....
मुस्कुराये जाते है,
सब भुलाए जाते हैं,
चाहतों का साहिल भी
ख्वाब ही में बाक़ी है...
ज़िन्दगी सवालों में,
रात दिन ख्यालों में,
उलझनों की आदत भी,
आप ही में बाक़ी है...
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