तुम्हे सुनना चाहता था बहुत दिन से ,
पर तुम जो सुना रहे थे वो बाते नहीं,
बातें जो टेबल पे अचानक बैठे
सोचते रहते हो,
बातें ,जो राह चलते
मुझसे टकराते ,
तुम्हारी जुबां से आकर चली जाती हैं
मुझे मालूम है तुम पहले ऐसे
नहीं हुआ करते थे,
पर पहले जैसा होना नामुमकिन तो नहीं....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें