मेरे ख्वाबों की अफसुर्दा महक थी और कुछ;
गुलों के खुशबू का अंजाम लिए फिरता हूँ...
चमन से लौट के चली जो गयी;
उसी बहार का इलज़ाम लिए फिरता हूँ...
पिछली आंधी में था जो टूट गया;
साथ अपने वो दिल-ए-नाकाम लिए फिरता हूँ...
जिन्होनें सीने से लगा रखा था मुझे ;
वो अपनी मुश्किलें तमाम लिए फिरता हूँ...
तुम्हारे साथ जो गुज़र थी गयी ;
साथ अपने वो आखिरी शाम लिए फिरता हूँ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें