मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ग़ज़ल

न ख़त्म करो तलाश , मंजिलें और भी हैं,
वो कारवां छूट गया तो क्या, काफिले और भी हैं,

मुश्किलों से टकराते रहो हर बार कह के,
जब तलक सामने तुम हो, हौसले और भी हैं,

एक के बाद दूसरा शुरू हो जाता है यहाँ,
जारी रखने को यहाँ सिलसिले और भी हैं

एक दिल से ही उलझ के न रह जाओ यहाँ,
हल करने को अभी मसले और भी हैं 

हर बार कोई चीज़ गलत नहीं होती ,
करने को ज़िन्दगी में फैसले और भी हैं,

एक तुम्हारे साथ ही नहीं हुआ है ये पहली बार,
सुनाने को अपनी दास्ताँ यहाँ, दिलजले और भी हैं.....

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