अजब सी दूरी दरम्यान में बन आई है;
न वो बुलाता है हमे, न हम जाते हैं...
जो भी मिलता है, दिल से लगा के रखते हैं;
न ख़ुशी जाती है वापस, न ग़म जाते हैं...
जो दहलीज बना रखी थी कभी हमने;
आज उसी के बाहर, मेरे कदम जाते हैं..
इसी आहट का कभी इंतज़ार होता था;
इसी आहट पे अब हम सहम जाते हैं...
दिलों में आग भी अब ज़रूरी है "शाहिद";
सर्द मौसम में जज़्बात भी जम जाते हैं...
न वो बुलाता है हमे, न हम जाते हैं...
जो भी मिलता है, दिल से लगा के रखते हैं;
न ख़ुशी जाती है वापस, न ग़म जाते हैं...
जो दहलीज बना रखी थी कभी हमने;
आज उसी के बाहर, मेरे कदम जाते हैं..
इसी आहट का कभी इंतज़ार होता था;
इसी आहट पे अब हम सहम जाते हैं...
दिलों में आग भी अब ज़रूरी है "शाहिद";
सर्द मौसम में जज़्बात भी जम जाते हैं...