तुम मुझसे छूट रहे हो
मुट्ठी से रेत की तरह
मै जितना जोर देता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...
कभी तुम आईने से कहते हो
सूरत बदल डालो;
कि जितना दिन ये ढलता है;
तुम उतना दूर जाते हो...
उजाला घर में मेरे
आता जाता है;
मुझसे जो भी मिलता है
मुझे समझाता जाता है ...
मुझको तकसीम कर देती
है मेरी तन्हाई,
मै जितना भीड़ में होता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...
मुट्ठी से रेत की तरह
मै जितना जोर देता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...
कभी तुम आईने से कहते हो
सूरत बदल डालो;
कि जितना दिन ये ढलता है;
तुम उतना दूर जाते हो...
उजाला घर में मेरे
आता जाता है;
मुझसे जो भी मिलता है
मुझे समझाता जाता है ...
मुझको तकसीम कर देती
है मेरी तन्हाई,
मै जितना भीड़ में होता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...
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