मंगलवार, 22 नवंबर 2011

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तुम मुझसे छूट रहे हो
मुट्ठी से रेत की तरह
मै जितना जोर देता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...

कभी तुम आईने से कहते हो
सूरत बदल डालो;
कि जितना दिन ये ढलता है;
तुम उतना दूर जाते हो...

उजाला घर में मेरे
आता जाता है;
मुझसे जो भी मिलता है
मुझे समझाता जाता है ...

मुझको तकसीम कर देती
है मेरी तन्हाई,
मै जितना भीड़ में होता हूँ
तुम उतना दूर जाते हो...

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