गुरुवार, 3 नवंबर 2011

ग़ज़ल,

मुझसे बिछड़ के मेरी तरह वो भी अकेला;
जब भीड़ में रहता है, मुझे याद करता है...

अपने गुनाह अपने हैं , जो उसका है वो याद;
यही सोचता हूँ , कौन किसको बर्बाद करता है..

एक बार कहीं बैठ के मेरे सवालों के साथ;
वो भी अपने जवाबों को आज़ाद करता है..

ग़म तो मौसम की तरह आते जाते हैं;
हाँ, वो ज़रूर इसमें कुछ इमदाद* करता है..

-शाहिद
* इमदाद=(हेल्प, मदद)



कोई टिप्पणी नहीं: