मुझसे बिछड़ के मेरी तरह वो भी अकेला;
जब भीड़ में रहता है, मुझे याद करता है...
अपने गुनाह अपने हैं , जो उसका है वो याद;
यही सोचता हूँ , कौन किसको बर्बाद करता है..
एक बार कहीं बैठ के मेरे सवालों के साथ;
वो भी अपने जवाबों को आज़ाद करता है..
ग़म तो मौसम की तरह आते जाते हैं;
हाँ, वो ज़रूर इसमें कुछ इमदाद* करता है..
-शाहिद
* इमदाद=(हेल्प, मदद)
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