बुधवार, 16 नवंबर 2011

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हम जो उलझे तो बारहा उलझे ;
दिल के मसले कभी सुलझे ही नहीं..

सबब उस बात का क्या रहा होगा;
ये सोचने में वक़्त भी ज़ाया होगा...

यही सोच के थकता रहा था दिल भी मगर
आज एक उबाल आ गया वाँ भी,

कुछ हादसे रोज़
होने के लिए होते है शायद

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