मुझसे मिलने की चाह न कर;
इस बात पे तू फिर आह न भर;
ये दुनिया है , वो झूठी है;
कुछ सच्चा है तो प्यार मेरा,
तेरी आँखों पे जो पर्दा है ,
उस से दिखता है क्या तुझको?
सच्ची बातों को ठुकरा कर;
सुख को पाने की चाह न कर,
तू दुनिया की परवाह न कर,
इस बात पे तू फिर आह न भर;
जो मेरा है वो क्या मेरा,
जो तेरा था वो छीन लिया;
अब मुझको फिर उम्मीद नहीं,
क्या वक़्त बदलेगा तुझको?
अंधेरों की, इस नगरी में
तू सूरज की फिर चाह न कर,
खुद को अब तू गुमराह न कर,
इस बात पे तू फिर आह न भर;
-शाहिद
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