शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

ग़ज़ल,

हाँ, उस से नफरत मगर अब उतनी तो नहीं है;
दिल दुखाने की आदत उसकी गयी भी नहीं है..

वो बात इतनी पुरानी नहीं की भूल जाए;
पर याद रखने वाली कोई नयी भी नहीं है....

ग़लत कहना उसको तो बहुत मुश्किल है मगर;
ये ज़रूर है कि वो बात कही से सही भी नहीं है...

हाँ न कहने से यही रहता है मकसद शायद;
कि मामला मेरी तरफ  से नहीं भी नहीं है...

दिल से दूर उसके कभी न रहे थे मगर;
अजब बात है कि दिल में अभी भी नहीं हैं..

सर पे एक छत कि तलाश थी "शाहिद";
पता चला कि पैरों तले ज़मीन भी नहीं है...

==="शाहिद"

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