रविवार, 11 दिसंबर 2011

ग़ज़ल,

रात एक इश्तहार हो जैसे;
कोई पहले को प्यार हो जैसे...

दिल रह रह के क्यों धड़कता है;
दिल फिर बेकरार हो जैसे..

ज़िन्दगी अब भी क्यों नहीं फानी;
किसी का इंतज़ार हो जैसे..


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