तरफ किसके हूँ समझ नहीं आता;
दिल को कहता हूँ पर नहीं आता ...
सर में एक आईना सा घूमता है;
नज़र कुछ भी मगर नहीं आता..
उसी जानिब हर रोज़ मै निकलता हूँ;
न जाने क्यों मै घर नहीं आता..
जिस तरफ मेरी ज़रुरत हो उसे;
मै चाहकर भी उधर नहीं आता...
मेरा दिल गाँव में रहता है कहीं;
मै बुलाता हूँ तो शहर नहीं आता..
ज़ुबान से रोज़ निकलना चाहे;
ज़हर फिर भी ज़ुबान पर नहीं आता..
चाँद खिड़की से देखता है हमे;
जाने क्यों कभी अन्दर नहीं आता..
मै पुकारता हूँ उसे रात ख़तम होने तक;
वो ख्वाब फिर भी रात भर नहीं आता..
=====शाहिद
दिल को कहता हूँ पर नहीं आता ...
सर में एक आईना सा घूमता है;
नज़र कुछ भी मगर नहीं आता..
उसी जानिब हर रोज़ मै निकलता हूँ;
न जाने क्यों मै घर नहीं आता..
जिस तरफ मेरी ज़रुरत हो उसे;
मै चाहकर भी उधर नहीं आता...
मेरा दिल गाँव में रहता है कहीं;
मै बुलाता हूँ तो शहर नहीं आता..
ज़ुबान से रोज़ निकलना चाहे;
ज़हर फिर भी ज़ुबान पर नहीं आता..
चाँद खिड़की से देखता है हमे;
जाने क्यों कभी अन्दर नहीं आता..
मै पुकारता हूँ उसे रात ख़तम होने तक;
वो ख्वाब फिर भी रात भर नहीं आता..
=====शाहिद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें