सोमवार, 5 दिसंबर 2011

ग़ज़ल,

ऐसे ही कभी तू भी, आदतें बदल के देख;
रौशनी चाहता है तो, तू भी जल के देख....

सच का रास्ता अभी भी, है वीरान पड़ा हुआ;
न हो तुझको ये यकीन, तो तू भी चल के देख...

शिकवे शिकायतों का सिलसिला अभी भी है;
कभी प्यार की राहों में, तू भी टहल के देख..


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