बुधवार, 23 नवंबर 2011

ग़ज़ल,

अजब सी दूरी दरम्यान में बन आई है;
न वो बुलाता है हमे, न हम जाते हैं...

जो भी मिलता है, दिल से लगा के रखते हैं;
न ख़ुशी जाती है वापस, न ग़म जाते हैं...

जो दहलीज बना रखी थी कभी हमने;
आज उसी के बाहर, मेरे कदम जाते हैं..

इसी आहट का कभी इंतज़ार होता था;
इसी आहट पे अब हम सहम जाते हैं...

दिलों में आग भी अब ज़रूरी है "शाहिद";
सर्द मौसम में जज़्बात भी जम जाते हैं...

2 टिप्‍पणियां:

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Shahid ji kya khoob gazal kahi hai aapne..

Rahe akasr hain sardi main, jalaye aag dil ki hum..
Dil-e-jazbat main khushiyan, dil-e-jazbaat main hain gam..

Yun to sabhi ashar ek se badhkar ek hain par mujhe pahla aur akhiri ashar kafi pasand aaya..

Shubhkamnaon sahi..

Deepak Shukla..

Shahid Ansari ने कहा…

शुक्रिया दीपक जी....