सोमवार, 11 अप्रैल 2011

बेकरारी

बेक़रार 
फिरते रहते हैं 
इन फिजाओं में 

जैसे कोई मुरझाया फूल
 फिर से खिलने की उम्मीद रखता हो

शायद कोई दवा ऐसी हो
जिसके पड़ने से  कुछ सूखे पेड़

भी फिर से वापस वैसे हो जायेंगे 
जैसा वो बहार के समय  हुआ करते थे

वरना फिर ये पेड़ 
 ये पेड़ वैसे ही रह जाते हैं जिनपे 
चिड़ियाँ अपने घोंसले बनती है

या फिर कोई लकडहारा

उसे काट कर 
किसी के घर के दरवाज़ों में लगा देगा

 पर ये बेकरारी 
कभी खत्म तो होगी 

पर तब तक शायद 
बहुत देर हो जाए
......

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