बेक़रार
फिरते रहते हैं
इन फिजाओं में
जैसे कोई मुरझाया फूल
फिर से खिलने की उम्मीद रखता हो
शायद कोई दवा ऐसी हो
जिसके पड़ने से कुछ सूखे पेड़
भी फिर से वापस वैसे हो जायेंगे
जैसा वो बहार के समय हुआ करते थे
वरना फिर ये पेड़
ये पेड़ वैसे ही रह जाते हैं जिनपे
चिड़ियाँ अपने घोंसले बनती है
या फिर कोई लकडहारा
उसे काट कर
किसी के घर के दरवाज़ों में लगा देगा
पर ये बेकरारी
कभी खत्म तो होगी
पर तब तक शायद
बहुत देर हो जाए
......
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