बहता रहता हूँ मै
अपनी कुर्सी पे बैठे बैठे
मेरी मेज़ पे बिखरे कागज़
उड़ते हुए जाना चाहते हैं
जैसे आजाद होना चाहते हों
मै उन्हें मोड़ कर
रद्दी की टोकरी में ड़ाल देता हूँ
जैसे कुचल देता है तूफ़ान
रास्ते में आने वाली हर चीज़ को
मेरी कलम के रंग उन कागजों से
झाँक कर मुझे मुँह चिढाते हैं
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