हम ख़याल
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
जागना पहले मुझे कभी इतना
बेहतर नहीं लगा
खुली आँखें थकी थकी सी
अच्छी लगती हैं
जैसे इंतजार हो
कभी न ख़तम होने वाला इंतज़ार
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