हम ख़याल
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
तुम मुझे शब् के अँधेरे में बुलाया न करो
रात भर मेरे खवाबों में यूँ आया न करो
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लगा के आग क्यों कहते हो है नहीं जलना
गर यही बात है ये आग लगाया न करो
कभी जो शाम ढले ,ज़िन्दगी उदास होगी
मगर कसम है मुझे ऐसे पाया न करो
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