गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

तुम मुझे शब् के अँधेरे में बुलाया न करो
रात भर मेरे खवाबों में यूँ आया न करो
 ....
लगा के आग क्यों कहते हो है नहीं जलना 
गर यही बात है ये आग लगाया न करो

कभी जो शाम ढले ,ज़िन्दगी उदास होगी
मगर कसम है मुझे ऐसे पाया न करो

.....

कोई टिप्पणी नहीं: