कल रास्ते में मिल गया था मुझे
उस टूटे हुए मकान के बरामदे में
जहाँ अब कोई आता जाता नहीं
मै घंटो वहां बैठा रहता था पहले
तब उस मकान की टूटी ईंटे
बातें करती सी मालूम होती थी
वो कल शायद कुछ ढूंढते हुए वहां
आया था
मुझे देख कर चौंक सा गया
थोड़ी देर तक कुछ भी नहीं बोला
फिर पास आकर बैठ गया
पूछने लगा
हाल चाल
बिलकुल अपनों की तरह जिनसे
काफी वक़्त बाद मिलना हुआ हो
बहुत देर बैठ कर उस से बातें की
जब वो जाने को हुआ तो
कहने लगा की ये घर मेरा हुआ करता था
अब हम शहर के दूसरे सिरे में रहते हैं
पर जाने क्यों मेरी रूह यही अटक गयी है
उसे ही ढूँढने चला आता हूँ
आज तुम्हे देखा तो लगा
उसे भी कोई साथी मिल गया है
अब शायद मै सुकून से रह सकता हूँ
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