मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

टूटे हुए मकान

कल रास्ते में मिल गया था मुझे

उस टूटे हुए मकान के बरामदे में
जहाँ अब कोई आता जाता नहीं

मै  घंटो वहां  बैठा रहता था पहले

तब उस मकान की टूटी ईंटे
बातें करती सी मालूम होती थी

वो कल शायद कुछ ढूंढते हुए वहां 
आया था

मुझे देख कर चौंक सा गया

थोड़ी देर तक कुछ भी नहीं बोला 
फिर पास आकर बैठ गया 

पूछने लगा   

हाल चाल 

बिलकुल अपनों की तरह जिनसे 
काफी वक़्त बाद मिलना हुआ हो

बहुत देर बैठ कर उस से बातें की 
जब वो जाने को हुआ तो 

कहने लगा की ये घर मेरा हुआ करता था

अब हम शहर के दूसरे सिरे में रहते हैं 

पर जाने क्यों मेरी रूह यही अटक गयी है
उसे ही ढूँढने चला आता हूँ

आज तुम्हे देखा तो लगा 
उसे भी कोई साथी मिल गया है

अब शायद मै सुकून से रह सकता हूँ
 

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