बुधवार, 13 अप्रैल 2011

लोरी

रात को जब नींद नहीं आती

अजीब अजीब सपने आते हैं

घने जंगल में 
किसी के चीखने के सपने 

धूल भरी आँधियों के सपने
तपते सूरज में जलने के सपने

फिर वो चले भी जाते हैं

जैसे मकसद सिर्फ मुझे डराना हो

 मुझे डर भी लगता है उस वक़्त
बहुत ज्यादा 

मगर फिर आंधियां रूक जाती 
चीखने का शोर थम जाता है

तपता सूरज ठन्डे चाँद में तब्दील हो जाता है

और फिर मुझे नींद आ जाती है...

भला ऐसी लोरी
मुझे रोज़ क्यों सुननी पड़ती है


जो बिलकुल भी मीठी नहीं लगती...

2 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

बहुत सुंदर भाव ...आपका आभार

Shahid Ansari ने कहा…

shukriya..!