शनिवार, 23 अप्रैल 2011

जुबां

मै उस जुबां में क्यों 
बोलना चाहता हूँ जो मुझे आती ही नहीं

सीखनी पड़ती है थोड़ी देर के लिए

मगर फिर भूल जाता हूँ

ज़रुरत मगर फिर भी आ ही जाती है

क्योंकि मै जो बातें 
ऐसे करता हूँ जैसे मुझे पसंद है 
 
तो वो लोगों को समझ नहीं आते

और कभी तो मुझे कुछ कहना ही नहीं पड़ता 
सुनना पड़ता है 

वही दोहराई गयी बात
नए तरीके से भी नहीं

बिलकुल वैसे ही पहले की तरह..

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