मै उस जुबां में क्यों
बोलना चाहता हूँ जो मुझे आती ही नहीं
सीखनी पड़ती है थोड़ी देर के लिए
मगर फिर भूल जाता हूँ
ज़रुरत मगर फिर भी आ ही जाती है
क्योंकि मै जो बातें
ऐसे करता हूँ जैसे मुझे पसंद है
तो वो लोगों को समझ नहीं आते
और कभी तो मुझे कुछ कहना ही नहीं पड़ता
सुनना पड़ता है
वही दोहराई गयी बात
नए तरीके से भी नहीं
बिलकुल वैसे ही पहले की तरह..
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